कृष्णा
कृष्णा कहो या रहीम उसे
राम कहो या गुरुनानक
उसी का रंग है उसी की लोह
एक है वोह, पर रूप अनेक
क्या कहूं उसे मै अब
वयाख्यान से सीमा रहित है वोह
अदृश्य, असिमत, अनित्य ही नहीं
अलोकिक, अजन्मा, अनंत है वोह
श्याम कहूं या श्यामा उसे
माधव कहूं या कनाहिया
कई नाम है बेअंत रूप है
घर घर में उसी का वास है
मेरे तोह अंग संग रहे वोह
सखा बन कर साथ निभाए वो
गुरु का ज्ञान उसी ने दिया
हर संकट से बचाए वो
उसका साथ हिम्मत है मेरी
उसका नाम सहारा
उसे संग मगन रहूँ मैं हर पल
वो है मेरा अधारा
इंसान है उसका नायब करिश्मा
सब जगत ने यह माना
हम में, तुम में, सब में वो है
क्या अन्दर क्या बाहार
अब बस याद रहे उसका सिमरन
सब जग देख मैं हारा
कृष्णा कहो या रहीम उसे
राम कहो या गुरुनानक
उसी का रंग है उसी की लोह
एक है वोह, पर रूप अनेक
क्या कहूं उसे मै अब
वयाख्यान से परे है वोह
अदृश्य, असिमत, अनित्य ही नहीं
अलोकिक, अजन्मा, अनंत है वोह
श्याम कहूं या श्यामा उसे
माधव कहूं या कनाहिया
राधा भी वोह है, मीरा भी वोह
कई नाम है बेअंत रूप है
ज्योति सभी में एक
मेरे तोह अंग संग रहे वोह
सखा बन कर साथ निभाए वो
गुरु का ज्ञान उसी ने दिया
हर संकट से बचाए वो
उसका साथ हिम्मत है मेरी
उसका नाम सहारा
उसे संग मगन रहूँ मैं हर पल
वो है मेरा अधारा
इंसान है उसका नायब करिश्मा
सब जगत ने यह माना
हम में, तुम में, सब में वो है
क्या तेरा, क्या मेरा
क्या अन्दर क्या बाहार
उसके सिमरन ने मुझे घेरा
देखा मैंने दुनिया का मेला
और कर्मो का खेला
देख देख हार गया मैं
तेरी माया का फेरा
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