चेहरा
चेहरे पे चेहरा
कुछ खास है हर चेहरा
हर एक सा है सब कुछ
पर फिर भी अंजाना सा हा हर चेहरा
पल पल रंग बदलता
इंसान की सख्शियत का आइना है उसका चेहरा
फिर भी कुछ धुंदला सा
दिखता है हर चेहरा
कहते है दिल का आइना है चेहरा
गमो का सैलाब छुपा लेता है चेहरा
शायद सच होता था किसी ज़माने में यह
अब तो मुखोटे में रहता है चेहरा
अपने लिए कुछ
और दुनिया के लिए कुछ और है यह चेहरा
दोस्तों में दुश्मनी की परछाई
और रिश्तों में बनावट है चेहरा
क्या सोचें किसी को देख कर
की अब सच कहाँ बयान करता है चेहरा
कभी कभी सोच उठता है मन
क्या होता अगर सच देखता हर चेहरे पर
अपने पराई का सच साफ़ होता
पर इतना सच कहाँ से लाएं
इसीलिए अंजान है हर चेहरा
सच है मुखौटा है हर चेहरा
तभी खास है हर चेहरा