गुलाब की कली
यह करोना ने भी अजीब से माहौल कर दिया है ।
बाहर जाओ तो बन्दिशे
और घर में आज़ाद कर दिया है
ऐसी ही आज़ादी के पल
कुछ बाल्कनी में गुजारे हैं ।
क़ुदरत के हमने चंद लम्हे
खुद को संवारने में लगाए हैं ।
हरे पतों के गमलों में
एक गुलाब की कली को पनपते देखा ।
क़ुदरत को उसमें रंग भरते देखा
देखा कि फूल कैसे जीवन में रंग भरते हैं
काँटों से उभरकर खिलते हैं ।
जैसे गुलाब पूरा खिलने के बाद मुरझा जाता है ।
लेकिन मुरझाने से पहले
ख़ुशबू का इतर छोड़ जाता है ।
अपने रंग और ख़ुशबू को क़ुदरत में बिखेर जाता है ।
वैसे ही क़ुदरत जीवन का आधार है ।